मुंबई, विनायक लुनियाः हिन्दू संस्कृति की हर परंपरा का अपना. अपना एक उच्च स्थान है जिसे हम संपूर्ण सम्मान से स्वीकारते है। भारत देश विविध शुद्ध रिवाजो से बना हुआ देश है। यह भूमि ऐसी ही संस्कृति से सींचती आई है, और यह हमारी शक्ति है। जहां देश विकास की दुनिया में ऊंचे पायदान पर है वही आज भी हम हमारे वजूद, हमारे संस्कारों के साथ रहे गहरे नातों से समर्पित है। यह देख के आनंदमय संतोष होता है की आज भी हमारा देश अपने रिवाजांे को बिना छोड़े उनके साथ आगे बड़ना चाहता है। हम दुनिया के बदलते अंदाज को अपना रहे हैं लेकिन अपने वजूद को भूले बिना।
हमारा वजूद हमारे पूर्वजों से ही जुड़ता है। इस देश का रंग ही ऐसा चड़ा है हम पर की हम हमारे लिए कुछ ना करे लेकिन अपने पूर्वजो की शान के लिए हमेशा तैयार रहेंगे। कही दान धर्म करने पर भी हम अपने पिता व दादा का नाम लिखवाएंगे। ऐसी संस्कृति दुनिया के किसी देश में नहीं दिखेगी। हमारा महान भारत देश ही तो हे जो हमें यह बात सिखाता है। अपने पूर्वजों को याद करना, उन्हें सन्मान देना और उनके नाम पर गौरव व्यक्त करना ये हमारे संस्कार है।
पूर्वजों को याद करने का बघ अवसर श्राद्धः- किसी भी देश में जाओ भांति-भांति के त्यौहार देखने को मिलेंगे लेकिन पूर्वजों को लगातार 16 दिन तक याद करना और उनके ऋण चुकाने के लिए पूजा करना यह संस्कार तो सिर्फ हमारे महान भारत देश में ही है। जहा पूर्वजो की अस्थिया को भी हम गंगा नदी में बहाना चाहते है। आज विदेशों में इलेक्ट्रिक अग्निदाह की प्रथा शुरू हो गई है लेकिन यह तो श्री राम की भूमि है, हम जानते हे की हमारे पूर्वज और बुजुर्गो के साथ कैसे व्यव्हार करते है। अरे! जीते हो तब ही नहीं मृत्यु के पश्चात भी पूर्वजों के शरीर का अद्भुत सन्मान किया जाता है। कहां देखने मिलेंगे यह रिवाज इन्हीं रिवाजों से सुंदर बना महकता देश ह। हमारा है! ये देश भारत हमारा है!
अगर हम से हमारे पूर्वजांे का कुछ अविनय हुआ है, कोई गलती हुई है तो उन्हें श्राद्ध के दिनों में याद कर के हमारी गलतियों की क्षमा मांगी जाती है। ताकि अगर उनकी आत्मा को कोई दुःख रहता है, कोई तकलीफे होती है तो वे तड़पे नहीं और जहां भी है सुख चैन से रहे। इन्सान के जीवन में भी और जीवन के बाद भी उसे ठेस न पहुंचे, दुखी ना हो यह ख्याल इस श्राद्ध पक्ष से प्रगट होता है। लेकिन सिर्फ 16 दिन नहीं हे पुरे साल हमें यही क्षमा भावना धरनी है। गलती सभी से हो सकती है चाहे बड़ा हो या छोटा जब तक जीव शिव नहीं बनता गलती करेगा लेकिन गलती का एहसास होना जरुरी है। श्राद्ध पक्ष से इसी गलती के भावों को क्षमा के भावों में रूपांतरित कर देना है तो मुक्ति की मंजिल करीब आएगी और स्व पर का कल्याण होगा और आत्मा परमात्मा की राह पर चलेगी।
इसी प्रकार अपने पूर्वजों के साथ-साथ तमाम जीव सृष्टि से क्षमा याचना करके हम सब प्रफुल्लित जीवन बनाये।
श्रद्धा से समर्पण बन जाता है श्राद्धः मुनि वैभवरतन विजय
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