परिवार पहचानपत्र के नाम पर जनता को तंग कर रहे नगर परिषद व अन्य विभाग, कहा ऐक देश एक कार्ड हो : ओंकार सिंह

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अम्बाला, हरियाणा, तरूण शर्मा : कभी आधारकार्ड कभी वोटकार्ड तो कभी परिवार पहचान पत्र के नाम पर किया जा रहा है आम जनता को तंग। केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा समय-समय पर अलग अलग पहचानपत्र बनवाने की नीति की आलोचना करते हुए इनैलो प्रदेश प्रवक्ता ओंकार सिंह ने कहाकि माननीय सर्वोच्च न्यायलय द्वारा केंद्र सरकारए सभी राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों को 31 जुलाई तक एक देश एक कार्ड बनाने का निर्देश देने का निर्णय सराहनीय व स्वागतयोग्य है। उन्होंने कहाकि भिन्न-भिन्न सरकारी विभागों द्वारा अनेक योजनाओं के लिए व्यक्ति की पहचान के बारे अलग-अलग मापदंड अपनाना गलत है इससे जनता में अविश्वास की भावना पैदा होने के साथ-साथ जनता को परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। आज देश मे पैन कार्ड, वोट कार्ड, आधारकार्ड, जाति प्रमाणपत्र, डोमिसाइल सर्टिफिकेट और अब परिवार पहचानपत्र सहित न जाने कितने कार्ड उपलब्ध है। प्रत्येक सरकारी विभाग अपने अलग मापदंड निर्धारित कर लेता है। कोई राशनकार्ड मांगता है तो कोई आधारकार्ड, कोई पैन कार्ड मांगता है तो कोई परिवार पहचान पत्र। एक योजना लागू होती है, सरकार बदलती है और नई योजना भी आ जाती है। यह बहुत असमंजस की स्तिथि है। कुछ वर्ष पूर्व आधारकार्ड की योजना आई थी उस समय यह कहा गया था कि आधारकार्ड सभी भारतीयों के लिए मूल दस्तावेज का कार्य करेगा और अन्य कार्डो की अनिवार्यता खत्म करेगा। इस योजना पर हजारों करोड़ रुपये खर्च भी किए गए और योजना लागू भी हो गयी लेकिन बहुत आश्चर्य की बात है कि अब एक नया सगोशा परिवार पहचान पत्र का आ गया। याब कहा जा रहा है कि बिना परिवार पहचान पत्र के सरकारी योजनाओं का लाभ नही मिलेगा। एक व्यक्ति को परिवार पहचान पत्र बनवाने के लिए 200 से 500 रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं और समय की बर्बादी व परेशानी अलग झेलनी पड़ती है। दूसरे प्रदेश से आए व्यक्तियों को स्थानीय पहचानपत्र न होने के कारण अनेक सरकारी योजनाओं से हाथ धोना पड़ता है। इस सारी व्यवस्था से जनधन व समय की बर्बादी के साथ साथ जनता को परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। अनिश्चितता के कारण अधिकारी मनमानी करते हैं और भ्र्ष्टाचार पनपता है। ऐसे में जरूरी भी है कि एक देश एक व्यक्ति एक पहचानपत्र की योजना लागू हो। एक व्यक्ति का एक ही कार्ड हो जिसमें उसकी जाति, आय, रिहायश का स्थान, परिवार का विवरण, वोट का विवरण व अन्य जरूरी सूचना दर्ज हो। इंटरनेट व उच्च टेक्नोलॉजी का जमाना है, यह सब कुछ आसानी से सम्भव है बस सरकार की नीयत ईमानदारी से योजना लागू करने की होनी चाहिए। अधिकतर योजनाए तो किसी व्यक्ति विशेष के फायदे के लिए या घपलेबाजी के लिए बना दी जाती है जोकि सरासर गलत है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से आशा की किरण पैदा होती है कि अब सरकारें एक देश एक कार्ड की योजना को ईमानदारी से लागू करेंगी जिससे जनधन की बर्बादी व अफसरों की मनमानी रुकेगी और जनता की परेशानियां कम होंगी।