जोधपुर, गजेन्द्र रांकावत : भरत पेशवा पाली पूर्व अध्यक्ष ने बताया कि एक होकर सरकार को हिलाने की जरूरत है। राजा महाराजाओं के द्वारा गांवों में या नगरों में मंदिर की पूजा करने के लिए वैष्णव पुजारियों को बसाया गया था और पूजा के साथ साथ परिवार का पालन पोषण करने के लिए उन्हें जमीन दी गई। जिसपे वो खेती करके परिवार का पालन पोषण कर सके लेकिन जब से प्रजातंत्र शुरू हुआ तब से पुजारियों की हालत भीख मांगने जैसी हो गयी राजा महाराजाओं का सहयोग तो बन्द हो गया साथ ही सत्ता में आये नेताओ ओर मंत्रियों ने भी अनदेखा कर दिया। मंदिर की भूमि को डोली की जमीन बताकर पुजारी के पेट भरने ओर परिवार चलाने का साधन ही छीन लिया, भारत मे कई जगह तो प्रभावशाली लोगो ने पुजारियों से जमीन भी हड़प ली जिसके कारण पुजारियो को मंदिर छोड़ परिवार पालन पोषण हेतु दूसरे शहर या नगरों में पलायन करने पड़ा ओर जो लोग अभी भी डोली भूमि पर काबिज है उनकी हालत बहोत ही दयनीय है क्योंकि पूर्वजो से मिली जमीन पर अब दस से ज्यादा परिवार आश्रित है और पुजारी को उस जमीन पर उसका हक नही मिलने के कारण सरकारी लाभ भी नही ले पाता उसका मुख्य कारण ना तो उसके पास जमीन का पट्टा है और न ही पावर है अगर खेती करनी होती हैं तो सरकारी लोन भी नही मिलता। घर का सामान गिरवी रखकर खेती कर भी लेता है तो फसल की गारंटी नही फसल किसी भी कारण खराब भी हो जाये तो सरकारी मुआवजा भी नही मिल सकता बेचारे पुजारियों की तो फसल भी बर्बाद ओर गिरवी रखा सामान भी गया और आगे के लिए घर परिवार का पालन पोषण करने के सब रास्ते बंद, गाँव वालों से या आस पास वालो से भी मदद मांगे तो भी कब तक क्योकि अगर प्राकृतिक आपदा आती है तो पूरे गांव या नगर में आती है अकेले पुजारी के यहां तो आती नही इसी कारण कोई भी आस पड़ोस वालो से पुजारी मदद भी नही मांग सकता। अब गांव के लोगो के पास खुद के नाम की जमीन होने के कारण उनको सरकारी मुआवजा मिल जाता है लेकिन पुजारी के पास उसके नाम का कुछ नही होने के कारण उसकी हालत पिछड़े से भी बदतर हो जाती है और कई बार देखा गया है इसी कारण बेचारा गरीब पुजारी आत्महत्या का भी कदम उठाने पर मजबूर हो जाता है। सरकार अगर पूरी जिम्मेदारी से वैष्णव संप्रदाय के लिए नही सोचेगी तो ये पुजारी सम्प्रदाय लुप्त हो जाएगा जिसके जिम्मेदार ये पद पर आसीन नेता और मंत्री लोग ही होंगे। मुख्य बात तो यह है कि समाज को ही एकजुट होकर सरकार को हिलाने की जरूरत है। अगर समाज एक होकर मौजूदा सरकार पर दबाव डाले तो वोट बैंक के भूखे नेता रातो रात पुजारियों के लिए सोचने और व्यवस्था करने पर मजबूर हो जाएंगे।
भारतीय वैष्णव सम्प्रदाय (पुजारियों) की स्थिति अल्पसंख्यक ओर पिछड़े वर्ग से भी बदतर
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