बाड़मेर, राजस्थान, वचन सिंह : सिवाना से दस किलोमीटर दूर स्थित पीपलून गांव की तलहटी में छप्पन की मनोरम पहाड़ियों में रचा-बसा है हल्देश्वर महादेव तीर्थ। अरावली पर्वत श्रृंखला के अंतिम क्षोर पर स्थित है हल्देश्वर महादेव तीर्थ। मनोरम पहाड़िया, कलरव करते पक्षी. जगह-जगह कल-कल की कलख ध्वनि के साथ बहते झरनों के बीच विराजमान है भगवान भोलेनाथा जाने के के लिए श्रद्धालुओं सिवाना के रास्ते जाना पड़ता हैं। सिवाना से दस किलोमीटर की तलहटी से पहाड़ियों के टेडे . मेडे व सकर 7 दुर्गम रास्तों से जाना पड़ता है। यहा हर श्रावण मास बाबा के दर्शनार्थ दूर . दूर से मन में आस्था लेकर शिव के दरबार में पहुंचते हैं। यहा आने वाले भक्तों के पैर भी पैदल चलते-चलते जवाब देने लगते है फिर भी भक्तों व कावड़ीयों का विश्वास कायम रहता है। शिव भक्त सैकड़ो की तादाद में यहा हर आते हैं। यहा हल्देश्वर महादेव का अपना रूप ही के पश्चात मत्रते मांग कर पूजा। अर्चना करते है तथा क्षेत्र में खुशहाली की कामना यह है पौराणिक मान्यता. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पांडवों के अज्ञातवास में कुंती पुत्र पांडवों ने इस मंदिर को स्थापित किया था। इस मंदिर के इर्द गिर्द स्थित छप्पन की पहाड़ियों में हल्दिया राक्षस रहता था और वह राक्षस यहा पर उसने आतंक फैला रखा था। उस वक्त हल्दिया राक्षस के आतंक की वजह से ग्रामीणों ने भगवान भोलेनाथ को याद किया तब शंकर भगवान इसी स्थान पर एक पीपल के के नीचे प्रकट हुए और हल्दिया राक्षस का वध किया था। वृक्ष उसी दिन से यह स्थान हल्देश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर के उत्तर में एक बड़ी शिखर टेकरी है उसमें गुरू गोरक्षनाथ महाराज धूणी व गुफा है यहा पर गुरु गोरक्षनाथ ने कई वर्षों तक तपस्या की थी। पहाडों में सबसे ऊंची चोटी पर मां भवानी का मंदिर भी हैं। पर पहुंचना बहुत ही कठिन है। अनूठी है पूंगला . पूंगली की पोल-हल्देश्वर महादेव मंदिर पर जाने वाले रास्ते में पहाड़ियों के मध्य भाग में स्थित है पूंगला-पंगली पोल। इस पाले की पौराणिक मान्यता है कि यहा पर सत्रहवीं सदी में कनाना के शासक आसकरण के पुत्र वीर दुर्गादास राठौड़ ने बनवाई थी। तत्कालीन महाराजा जसवंतसिंह को जोधपुर की गद्दी पर बिठाने के लिए दिल्ली औरंगजेब से वीर दुर्गादास राठौड़ने अनुरोध किया तब औरंगजेब ने जोधपुर को शाही रियासत के अंदर सम्मिलित करने को कहा और अजीतसिंह को महाराजा बनाने से इंकार कर दिया। तब साल दर्शन करने के लिए निराला है। भक्त दर्शन करने करते है।
वीर दुर्गादास ने अपने सैनिकों के साथ दिल्ली प्रस्थान किया एवं दुर्गादास की बात मानने से मना कर दिया तत्पश्चा दुर्गादास राठौड़ ने औरंगजेब के पुत्र व पुत्री (पूंगला-पूंगली) का अपहरण कर मारवाड़ में सिवाना के समीप छप्पन की पहाड़ियों में लाकर छुपा दिया। फिर यहा पर वीर दुर्गादास ने पत्थरों की कारीगरी से एव विशाल पोल का निर्माण करवाया। इस पोल के अंदर दो कमरे बनाए उसमें औरंगजेब के पुत्र व पुत्री को गुप्त रूप से रखा गया था। आखिर अपने पुत्रों की खातिर औरंगजेब ने वीर दुर्गादास की बात मान ली और अजीतसिंह को मारवाड़ का राजा बना दिया। तब वीर दुर्गादास ने औरंगजेब के दोनो बच्चों को सकुशल वापस लौटा दिया। इस पोल की खासियत यह भी है कि पोल को सिर्फ पत्थरों से बनाया गया है इसमें चूना व सिमेंट का कही भी उपयोग नहीं किया गया है। हल्देश्वर महादेव तीर्थ को पर्यटन स्थल बनाया जा सकता है. वर्ष में दो माह तक श्रद्धालुओं का आवागमन रहता है। यहा आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु का यही कहना है कि प्रकृति का द यहा एक अनोखा आनंद भी है भगवान भोले बाबा का दरबार भी तो सरकार या पर्यटन विभाग पहल करे तो इस स्थान पर मूलभूत सुविधाएं व दुर्गम व उबड़ खाबड़ रास्तों को ठीक करे और विद्युत व्यवस्था करवाई जाएं तो सरकार के लिए नया आमदनी का रास्ता खुल सकता हैं। हल्देश्वर महादेव मंदिर को देवस्थान विभाग व पर्यटन विभाग मिलकर इस तीर्थ को विकसित करें तो हर साल अच्छी आमदनी भी हो सकती हैं। क्षेत्र का बड़ा पिकनिक स्थल भी है. शिव भक्त बड़ी संख्या में यहा दर्शनार्थ तो आते है लेकिन भक्त यहा मनोरम पहाड़ियों के बीच बहते झरने व पहाड़ियों के बीच बने कई तालाबों में नहाने का भी भरपूर आनंद लेते हैं । चारों ओर हरियाली की ओट में बसे इस तीर्थ पर भक्त श्रावण व भाद्रपद मास में हजारों की तादाद में पिकनिक भी मनाने आते हैं। अपार जड़ी बुटियों का भंडार. छप्पन की पहाड़ियों में कई तरह की जड़ी बूटियां व अमूल्य खनिज के भंडार हो सकते हैं। बुजुर्गों का मानना है कि यहा पर कई तरह की जड़ी बुटियां होती थी और उन्हें घरेलू उपचार व गंभीर बिमारियों के इलाज के लिए काम में लिया जाता था। जानकारों का कहना है कि सरकार गंभीर विचार कर इसे पर्यटन स्थल घोषित करें तो यहा विकास के नए आयाम स्थापित हो सकते है तथा इस पहाड़ी पर कई तरह के खनिज के भंडार भी हो सकते हैं।
राजस्थान बाड़मेर ज़िला के पीपलून गाँव में बसा
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