विरासत बचाने की होगी हर संभव कोशिश….प्रो. सिंह

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दरभंगा, संतोष कुमार : मिथिला भाषाई और सांस्कृतिक समरसता की भूमि रही है उर्दू और मैथिली दोनों भाषाओं को समृद्ध किया है। मैथिली में जहाँ उर्दू के बहुतायत मे शब्द घुलमिल गए है वही उर्दू में भी मैथिली के करीब पाँच सौ से अधिक स्वीकार कर लिए गए है। अन्य समुदायों की भांति मिथिला के मुसलमानों का मैथिली भाषा के विकास में योगदान रहा है। उक्त बातें उर्दू और मैथिली के विद्वान मो. मंजर सुलेमान ने आचार्य रमानाथ झा हेरिटेज सीरीज के तहत जानकी नंदन सिंह स्मृति व्याख्यान देते हुए कही। रविवार को इसमाद फाउंडेशन के बैनर तले कामेश्वर नगर में स्थित गांधी सदन में आयोजित व्याख्यान माला में बोलते हुए मंजर सुलेमान ने उर्दू और मैथिली के बीच के संबंधों को रेखांकित करते हुए दोनों समुदायों के लेखकों के बीच भाषाई आदान प्रदान का सूचीबद्ध रूप से विस्तार से चर्चा की। उर्दू के पहले कवि अमीर खुसरो के मैथिली उपयोग की चर्चा करते हुए उन्होंने उन रचनाओं का उल्लेख किया जिन रचनाओं में उन्होंने मैथिली भाषा के शब्दों का प्रयोग किया है। इसी प्रकार मैथिली के कवि विद्यापति की रचनाओं में उर्दू शब्दों के उपयोग पर भी उन्होंने प्रकाश डाला। डॉ. सुलेमान करीब सौ से अधिक ऐसे उर्दू विद्वानों की चर्चा की जिन्होंने मैथिली के शब्दों का अपने उर्दू की रचनाओं में उल्लेख किया बल्कि कई विद्वानों ने तो मैथिली भाषा मे स्वतंत्र रचनाएं भी की है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि मिथिला की विरासत को सहेजना हम सबकी महती जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि इसमाद फॉउंडेशन धरोहरों के प्रति लोगो मे जागरूकता लाने का जो काम कर रही है वह काबिले तारीफ है। कुलपति ने कहा कि वो विरासत के प्रति सजग है और इसको बचाने के लिए हो रहे किसी भी प्रयास के सहभागी है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए गजानन मिश्र ने दरभंगा के नामकरण और इसके विकास की चर्चा की। डॉ. मिश्र ने मिथिला के सामाजिक सरोकारों की चर्चा करते हुए यहाँ की वनस्पति से लेकर मछली के सौ से अधिक प्रजाति का उल्लेख किया। डॉ. मिश्र ने मिथिला को एक जल प्रधान क्षेत्र बताते हुए इसकी विरासत को समझने और बचाने की जरूरत बताई खासकर कामेश्वर नगर की प्राचीनतम का उल्लेख करते हुए यहाँ हो रहे निर्माणों कार्यो में ऐतिहासिक साक्षो को बचाने की बात कही। इससे पूर्व कुलपति ने कंदर्पी घाट युद्ध की निशानी मिथिला विजय स्तंभ की प्रतिलिपि का अनावरण किया। कार्यक्रम में कुलसचिव कर्नल निशीथ कुमार राय, अध्यक्ष, छात्र कल्याण प्रो. रतन कुमार चौधरी, राजनीति विज्ञान के प्रो. जितेंद्र नारायण, हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह, प्रो. विश्वनाथ झा, डॉ. बैद्यनाथ चौधरी ‘बैजू’, प्रो. विनय कुमार चौधरी, डॉ. शंकरदेव झा, महाराजाधिराज कामेश्‍वर सिंह कल्‍याणी फाउंडेशन के विशेष पदाधिकारी श्री श्रुतिकर झा और बिहार विधान परिषद के पदाधिकारी श्री रमनदत्‍त झा  विद्वान आदि मौजूद थे। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए इसामद फाउंडेशन में न्यासी संतोष कुमार मिथिला का विद्वत समाज ही मिथिला को सही दिशा दे सकता है ज्ञान ही मिथिला की पहचान को लौटा सकती है। मंच का संचालन सुमन झा ने किया।

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