दिल्ली-एनसीआर की लाइफलाइन दिल्ली मेट्रो को 4000 करोड़ से अधिका का घाटा

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नई दिल्ली, नगर संवाददाता: डेढ़ दशक से अधिक समय से दिल्ली-एनसीआर के लाखों लोगों की लाइफलाइन दिल्ली मेट्रो पिछले एक साल से सबसे बुरे दौर में है। कोरोना वायरस संक्रमण और एक साल के भीतर 7 महीने से अधिक समय तक बंद रही दिल्ली मेट्रो रेल निगम को अब तक 4000 करोड़ रुपये से अधिक का घाटा हो चुका है। दरअसल, पिछले साल 22 मार्च से 6 सितंबर तक लगातार 5 महीने से अधिक समय तक दिल्ली मेट्रो बंद रही। इसके बाद इस साल 10 मई से 6 जून चक मेट्रो का परिचालन बंद रहा। इस दौरान दिल्ली मेट्रो का संचालन हुआ भी तो बेहद कम यात्री झमता के साथ, ऐसे में कमाई वैसी नहीं हुआ, जैसा कि होनी चाहिए थी।

7 मई से 6 जून तक बंद रही मेट्रो को हुआ 300 करोड़ रुपये का नुकसान
राजधानी दिल्ली में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों के बढ़ने के चलते 19 अप्रैल से लॉकडाउन लगा दिया गया था। इस बीच 10 मई से दिल्ली मेट्रो रेल निगम की ट्रेनें भी बंद कर दी गई थी। फिर लॉकडाउन के दौरान राहत देते हुए इसी सोमवार (7 जून) दिल्ली मेट्रो का परिचालन 50 फीसद यात्री क्षमता के साथ शुरू हुआ था लेकिन एक महीने के दौरान दिल्ली मेट्रो को लॉकडाउन में 300 करोड़ का नुकसान हुआ।

सालों लगेंगे 4000 करोड़ रुपये से अधिक के नुकसान की भरपाई करने में
28 दिनों के बाद मेट्रो सेवाएं बहाल होने के बाद धीरे-धीरे हालात फिर से पटरी पर लौट रहे हैं। बुधवार से तो दिल्ली मेट्रो सभी सातों लाइनों पर पूरी क्षमता के साथ रफ्तार भर रही है, लेकिन हालात सामान्य होने में काफी समय लगेगा। लोगों को पूरी तरह कोरोना रोधी टीका लगने के बाद ही मेट्रो की यात्रा सामान्य हो पाएगी। सालभर के दौरान दिल्ली मेट्रो को 4000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। ऐसे में माना जा रहा है कि डीएमआरसी को अपना 4000 करोड़ रुपये से ज्यादा का घाटा पूरा करने में सालों लगेंगे। संभव है चैथे फेज का काम पूरा होते डीएमआरसी की कमाई में तेजी से इजाफा हो।

लॉकडाउन के दौरान मेट्रो सेवाएं बंद होने से डीएमआरसी को 300 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। लॉकडाउन और कोरोना संक्रमण के चलते पिछले महीने सभी रूटों पर डीएमआरसी ने 10 मई से मेट्रो सेवाएं बंद कर दी थीं। मेट्रो को रोजाना टिकट से रोजाना औसतन 10 करोड़ रुपये मिलते थे, लेकिन एक महीने के दौरान दिल्ली मेट्रो डिपो में खड़ी रहा और कमाई भी नहीं हुई। ऊपर से कर्मचारियों की सैलरी और रखरखाव पर लाखों रुपये रोजाना खर्च होते रहे।