दुर्गादेवी धाम के दरबार में श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं होती हैं पूरी

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सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश, नगर संवाददाता: नवरात्रि में जिले के पवित्र दुर्गा देवी धाम में दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है। मां के दर्शन के लिए जिले ही नहीं वरन पड़ोसी जिलों के लोग भी मां के दर्शन के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि माता जी के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नवरात्र के अतिरिक्त प्रत्येक सोमवार को माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं आते हैं। लखनऊ-वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर लोहरामऊ में माता का धाम है। जिला मुख्यालय से छह किलोमीटर की दूरी पर है। यहां पहुंचने के लिए पयागीपुर चैराहा व शहर के राहुल चैराहा से आटो, टेम्पो व रोडवेज बस तथा अन्य साधन हर समय उपलब्ध रहता है। नगर निवासी तो गाजे-बाजे के साथ धाम तक की यात्रा पैदल ही पूरी करते हैं। -पिंडी रूप में मां ने दिए थे दर्शन पुजारी पण्डित राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल अपने पिता के साथ से ही मंदिर की सेवा में जुटे हुए हैं। श्री शुक्ल ने बताया कि गांव के लोग जानवर चरा रहे थे, उसी समय लोहरामऊ गांव की बाग में नीम के पेड़ के नीचे पिंडी रूप में माता के दर्शन हुए थे। जहां पर 18 वीं दशक में लोग पूजा पाठ करते थे। 1983 में तत्कालीन पुजारी सरयूप्रसाद मिश्र एवं उनके सहयोगी पंडित लालता प्रसाद द्वारा प्राचीन दुर्गा मंदिर के सिंहासन का जीर्णोद्धार कर वहां विशाल देवी मंदिर का निर्माण कराया गया। श्री शुक्ल ने बताया दो मार्बल पत्थर में माता जी का एक स्वरूप स्वयं उदय हो गया है। इस प्रकार से तीनों माताओं के दर्शन मिलता है। माता का सजा है दरबार देवी धाम का मंदिर परिसर काफी बड़ा है। गर्भगृह के सामने ही हनुमान जी तथा दाहिनी तरफ श्रीराम दरबार सजा है। साथ ही इसी परिसर में मनकामेश्वर, शिवलिंग, संतोषी माता तथा राधा-कृष्ण की प्रतिमाएं स्थापित हैं। देवी परिक्रमा के समय भक्तगण इनका भी पूजन-अर्चन करते हैं। नवरात्र पर बंटता है विशेष प्रसाद मां की महिमा में आस्था जताने वाले श्रद्धालु नवरात्रि के दिनों में तरह-तरह के प्रसाद बांटते हैं। जिनमें छुहारा, काजू, बदाम, किसमिस आदि मेवे के साथ केला, संतरा, अंगूर आदि फल तथा हलुआ-पूरी का वितरण शामिल है। मनोकामना पूर्ण होने पर चढ़ता है कराही यहां मनोकामना पूर्ण होने के बाद कराही चढ़ाने का पौराणिक प्रचलन है। मां के दर्शन को आने वाले लोग मंदिर परिसर में ही देशी घी की पूड़ी व हलुआ बनाते हैं और उसी का भोग लगाया जाता है। वैसे तो यहां रोजाना सुबह और शाम मां की आरती व देवी पाठ होता है। नवरात्र में यहां पर पूजा-पाठ की विशेष व्यवस्था होती है। सुबह पांच बजे से मंदिर में पूजा-पाठ होता है। शाम को आठ बजे विशेष आरती व रात्रि दस बजे तक दर्शन के लिए मंदिर खुला रहता है। माता के दरबार में होती है शादियां श्री शुक्ल ने बताया कि श्रद्धालुओं का ऐसा विश्वास है कि माता जी दो जोड़ो के मिलन की साक्षी भी बनती हैं। वर एवं बधू पक्ष मिलकर लोग माता के सामने लड़के एवं लड़कियों की शादी भी कराते हैं। यही नहीं शादी का संयोग भी माता जी के दरबार में तय होता है।

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