नई दिल्ली/नगर संवाददाताः विधि आयोग ने कहा है कि हिंसा भड़काना ही नफरत वाले भाषण का एकमात्र मानदंड नहीं हो सकता है। आयोग ने इसके दायरे में नफरत तथा डर फैलाने को भी लाने की सिफारिश करते हुए उसके दंडात्मक प्रावधान को बढ़ाने पर जोर दिया है। उसके मुताबिक कोई भाषण भले ही हिंसा भड़काने वाला नहीं हो, लेकिन वह समाज के किसी वर्ग को हाशिए पर धकेल सकता है। ‘हेट स्पीच’ विषयक कानून मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में आयोग ने कहा है कि नफरत फैलाने, डर पैदा करने या खास मामलों में हिंसा भड़काने के संबंध में आईपीसी को संशोधित कर नए प्रावधान किए जाने की जरूरत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोई भाषण नफरत वाला है या नहीं, यह तय करने के लिए हिंसा भड़काना ही एकमात्र पैमाना नहीं हो सकता है। भले ही किसी भाषण से हिंसा नहीं भड़के, लेकिन वह समाज में किसी खास समुदाय या व्यक्ति को हाशिए पर धकलने की क्षमता रखता है। तकनीक के युग में इंटरनेट पर असमाजिक तत्व अनाम रहते हुए आसानी से झूठ और आक्रामक विचारों को फैला सकते हैं। आयोग ने कहा है कि जरूरी नहीं कि वे विचार हिंसा ही फैलाएं लेकिन वे समाज में व्याप्त भेदभाव रवैए को बढ़ावा दे सकता है। इसलिए भेदभाव को बढ़ावा देना भी नफरत वाले भाषण की पहचान का एक महत्वपूर्ण कारक है। रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा कोई भी लिखित या मौखिक शब्द, चिह्न या देखने-सुनने योग्य कोई भी प्रतीक जिसका इरादा डर या बेचैनी पैदा करना या हिंसा भड़काना हो, नफरत फैलाने वाला भाषण है।
नफरत फैलाने वाले बयान पर बढ़ सकता है दंडात्मक कानून का दायरा
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