नई दिल्ली, नगर संवाददाता: उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे के दौरान गोकुलपुरी में दुकानों को लूटने और आग लगाने की दो तारीखों में अंजाम दी गईं अलग-अलग वारदात में एक ही एफआईआर दर्ज किए जाने को अदालत ने दिल्ली पुलिस की खामी करार दिया है। अदालत ने पुलिस की इस खामी की वजह से तीन आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया है।
कड़कड़डूमा स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव की अदालत ने तीनों आरोपियों को जमानत देते हुए कहा कि पुलिस की जांच में बड़ी खामी है। दो अलग घटनाओं की प्राथमिकी एक कैसे हो सकती है? अदालत ने यह भी कहा कि दोनों घटनाओं को लेकर दाखिल शिकायतों में कहीं पर भी आरोपियों के नाम का जिक्र नहीं किया गया। जबकि, पीड़ित और आरोपी एक ही क्षेत्र के रहने वाले हैं। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि शिकायतकर्ता आरोपियों को पहचानते ही नहीं थे। अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस को प्राथमिक स्तर पर ही इन तथ्यों को लेकर तफ्तीश करनी चाहिए थी। लेकिन, स्थानीय पुलिस ने दो अलग दिन और अलग स्थानों पर घटित घटनाओं की जांच एक साथ की और दोनों की एक ही प्राथमिकी दर्ज कर ली। इसका असर इन घटनाओं की जांच पर सीधे तौर पर पड़ा। इतना ही नहीं, इन घटनाओं को लेकर पुलिस की तरफ से सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी पेश नहीं की गई। अदालत ने कहा कि इस मामले में आरोपी जमानत पाने के हकदार हैं। आगे का मामला सुनवाई के दौरान स्पष्ट हो जाएगा।
ये घटनाएं गोकुलपुरी थाना क्षेत्र में हुई थीं। दो दुकानों को लूट लिया गया और आग लगा दी गई थी। दोनों घटनाएं अलग-अलग दिन हुईं। पहली घटना 24 फरवरी को घटित हुई, जबकि 25 फरवरी को दोपहर हुई। ऐसे में इन दोनों घटनाओं की एक प्राथमिकी दर्ज किए जाने पर अदालत ने सवाल खड़े किए हैं।