जगराओं/पंजाब, दविन्दर जैन: राष्ट्र संत, डॉक्टर, पंजाब मालवा केसरी, समन्वय मिशन के प्रेरक, जैनाचार्य दिव्यानंद सूरीश्वर जी महाराज साहब (निराले बाबा जी) ने समाचार पत्र के द्वारा भक्त जनों को प्रेरणा देते हुए कहा कि अपने मातापिता से जिन संतानों ने उनके बाल्यकाल में संस्कार प्राप्त किये हैं वो और जो किसी भी कारणवश ऐसे संस्कार प्राप्त नहीं कर पाये हैं उन दोनों वर्ग का अंतर, उन दोनों के बीच का फर्क हमें बहुत आसानी से दिखाई देता है। हां, इसमें कुछ उदाहरण विपरीत भी पाये जा सकते हैं परंतु अधिकतर, कोई भी सरलता से ये फर्क महसूस कर सकता है। हकीकत में जो जीवन के मूल्य बाल्यकाल में संस्कारों के रोपे जाते हैं, वो मूल्य व्यक्ति का साथ कभी भी नहीं छोड़ते। ये मूल्य विपरीत परिस्थितियों में भी साथ नहीं छोड़ते, अपितु ऐसे समय मे व्यक्ति का मार्गदर्शन कर के उसे ऐसी विकट परिस्थितियों से बाहर निकलने में सहायक बनते हैं। चिकागो यूनिवर्सिटी ने कुछ समय पहले एक प्रयोग द्वारा ये जानने की चेष्टा की के आज कल के युवा, टी वी, सोशीअल मीडिया और आधुनिकता के कारण हिंसक और विकृत हो रहे हैं और उनमें से ही कुछ युवा इन आदतों से बच जाते हैं तो इनमें ये अंतर कैसे होता है। सर्वे और रिसर्च के बाद यह पता चला के जो युवा इन आदतों से बचे रहे उनको बाल्यकाल में ही उनके सद्गुण और नैतिक मूल्यों के लिये आदरभाव उनके मातापिता व परिवारजनों द्वारा रोपने में आये थे।
और ये ही मूल्य निष्ठा उनके लिये, हमेशा के लिये प्रेरणा का स्रोत बन कर रह गये।
सर्वे और रिसर्च के बाद यह पता चला के जो युवा इन आदतों से बचे रहे संत निराले बाबा
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