नई दिल्ली/नगर संवाददाता : भारतीय क्रिकेट में संन्यास किसी पहेली की तरह है, जहां कुछ खिलाड़ियों ने सही समय यह फैसला किया जबकि कुछ इस बारे में फैसला लेने के लिए जूझते दिखे। महेन्द्र सिंह धोनी के भविष्य पर जारी दुविधा ने एक बार फिर इस बहस को छेड़ दिया है कि भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े सितारों में से एक कब खेल को अलविदा कहेगा।
झारखंड के 38 साल के धोनी पिछले 2 महीने से टीम के साथ नहीं हैं और नवंबर से पहले उनके टीम के साथ जुड़ने पर भी संशय बरकरार है। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास को लेकर अब तक धोनी की ओर से कुछ नहीं कहा गया है।
बीसीसीआई के एक सूत्र ने कहा कि इस बात की संभावना बेहद कम है कि धोनी बांग्लादेश के दौरे के लिए उपलब्ध होंगे। बीसीसीआई में हम सीनियर और ‘ए’ टीम के क्रिकेटरों के लिए 45 दिन पहले मैचों (अंतररराष्ट्रीय और घरेलू) की तैयारी कर लेते है जिसमें प्रशिक्षण, डोपिंगरोधी कार्यक्रम से जुड़ीं चीजें शामिल हैं।
यह पता चला है कि मंगलवार से शुरू हो रही विजय हजारे राष्ट्रीय एकदिवसीय चैंपियनशिप में धोनी झारखंड के लिए नहीं खेलेंगे। दिग्गज सुनील गावस्कर ने हाल ही में एक टेलीविजन कार्यक्रम में कहा था कि मुझे लगता है वे खुद ही यह फैसला कर लेंगे। हमें महेन्द्र सिंह धोनी से आगे के बारे में सोचना चाहिए। कम से कम वे मेरी टीम का हिस्सा नहीं होंगे।
गावस्कर को एक क्रिकेटर के तौर पर सीधे स्पष्ट तौर पर बोलने के लिए जाना जाता है। बात जब संन्यास की आती है तो गावस्कर ने यह फैसला बेहतरीन तरीके से किया। गावस्कर ने चिन्नास्वामी स्टेडियम की टर्न लेती पिच पर अपने अंतिम टेस्ट में पाकिस्तान के खिलाफ 96 रन बनाए थे।
गावस्कर 1987 में 37 साल के थे लेकिन अपनी शानदार तकनीक के दम पर 1989 के पाकिस्तान दौरे तक खेल सकते थे। वे इस खेल को अलविदा कहने की कला को अच्छी तरह से जानते थे। उन्हें पता था कि अच्छे प्रदर्शन के बाद भी वे इस खेल का लुत्फ नहीं उठा पा रहे हैं।