सरकार का बड़ा कदम, अब आतंकियों के ‘मददगार’ भी आतंकवादी

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दिल्ली/नगर संवददाता : नई दिल्ली। आतंकवाद फैलाने वाले संगठनों के साथ ही ऐसी गतिविधियों में लिप्त व्यक्ति विशेष को भी अब आतंकवादी घोषित करने और उस पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित विधेयक विपक्ष के विरोध और बहिर्गमन के बीच बुधवार को लोकसभा में पारित हो गया।

गृहमंत्री अमित शाह ने विधेयक पर दो दिन तक चली चर्चा का जवाब देते हुए बुधवार को लोकसभा में कहा कि इसके राजनीतिक दुरुपयोग की आशंकाओं को खारिज कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति विशेष को गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के दायरे में लाना जरूरी था, इसीलिए सरकार को गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 लाना पड़ा।
उन्होंने कहा कि आतंकवाद सिर्फ बंदूक से जन्म नहीं लेता। जो उसके प्रचार में सहयोग करता है
वह भी आतंकवादी है। इस संशोधन के जरिए आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने वाले, आतंकवादियों को तैयारी में मदद करने वाले, उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करने वाले और साहित्य एवं वैचारिक प्रचार के जरिए आतंकवाद के सिद्धांत का प्रचार करने वालों को आतंकवादी घोषित करने का प्रावधान किया गया है।
शाह ने आश्वस्त किया कि इसमें बहुत सारी सावधानी बरती गई है कि इसका दुरुपयोग न हो। मैं आश्वस्त करना चाहता हूं कि कानून सिर्फ और सिर्फ आतंकवाद को समाप्त करने के लिए है। समय आ गया है कि एक के बाद एक संस्था बदलने वालों को आतंकवादी घोषित किया जाए।

इससे पहले कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने विधेयक को संसद की स्थायी समिति और संयुक्त प्रवर समिति के पास भेजने की मांग की। उनकी मांग नहीं माने जाने पर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने सदन से बहिर्गमन किया जबकि शाह ने कहा कि विपक्षी दलों के सदस्य ‘वोट बैंक नाराज न हो इस भय से’ सदन से बाहर जा रहे हैं।

ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन के असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक पर विचार का विरोध किया और मत विभाजन की मांग की। मतदान से पहले बसपा के सदस्य भी सदन से बाहर चले गए। मतदान पर्चियों से हुई वोटिंग में 8 के मुकाबले 287 मतों से विधेयक पर विचार की अनुमति मिल गई।

इसके बाद विपक्ष के सभी संशोधन भी सदन में खारिज हो गए। ओवैसी द्वारा पेश संशोधनों पर तीन बार मतदान हुआ। हालांकि अध्यक्ष ने इन तीनों मौकों पर पर्चियों की बजाय संशोधनों का समर्थन तथा विरोध करने वालों से बारी.बारी से उनकी जगहों पर खड़े होने के लिए कहकर मतदान कराया। पहली दो बार में संशोधनों के पक्ष में 8 तथा विरोध में 288 मत पड़े जबकि तीसरी बार में संशोधनों पक्ष में सात और विरोध में 288 मत पड़े।
अध्यक्ष ओम बिरला ने खड़े करवाकर सदस्यों की गणना करने के लिए लोकसभा के कार्यसंचालन एवं प्रक्रिया संबंधी 367 नियम का हवाला दिया जिसके तहत अध्यक्ष को यदि लगता है कि मत विभाजन की ‘अनावश्यक’ माँग की जा रही है तो वह इस प्रकार से मतदान करवा सकता है।

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