वेल्लूर, तमिलनाडू/दलपत सिंहः अभी तक हम देश में स्वर्ण मंदिर के तौर पर श्री दरबार साहिब अमृतसर को ही जानते हैं लेकिन इसके मुकाबले दक्षिण भारत में भी एक स्वर्ण मंदिर बन चुका है। तमिलनाडु के वेल्लोर के पास श्रीपुरम में बने महालक्ष्मी मंदिर के निर्माण में तकरीबन 15000 किलोग्राम विशुद्ध सोने के इस्तेमाल हुआ है। जबकि हरमंदिर साहिब अमृतसर के गुंबद में 400 किलोग्राम सोने के इस्तेमाल हुआ है। स्वर्ण मंदिर श्रीपुरम के निर्माण में 300 करोड़ से ज्यादा राशि की लागात आई है। मंदिर के आंतरिक और बाह्य सजावट में सोने का बड़ी मात्रा में इस्तेमाल हुआ है। विश्व में किसी भी मंदिर के निर्माण में इतना सोना नहीं लगा है। रात में जब इस मंदिर में प्रकाश किया जाता है तब सोने की चमक देखने लायक होती है। अपनी भव्यता के कारण महालक्ष्मी मंदिर कुछ ही सालों में दक्षिण के स्वर्ण मंदिर के तौर पर प्रसिद्ध हो गया है। तमिलनाडु जाने वाले श्रद्धालु अब महालक्ष्मी मंदिर वेल्लोर जरूर जाते हैं। कई दिन तो यहां एक दिन में एक लाख से ज्यादा श्रद्धालु आते हैं। दक्षिण भारत के व्यस्त रेलवे स्टेशन काटपाडी से महालक्ष्मी मंदिर सात किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है। काटपाडी रेलवे स्टेशन वेल्लोर शहर का हिस्सा है। इस मंदिर का निर्माण युवा संन्यासी शक्ति अम्मा ने कराया है। मंदिर का उद्घाटन 24 अगस्त 2007 को हुआ। यह मंदिर सात साल में बन कर तैयार हुआ है। जब आप श्रीपुरम पहुंचते हैं तो आपको एक अलग नैसर्गिक वातावरण का एहसास होता है। इस मंदिर के निर्माण के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का भी पूरा ख्याल रखा गया है। 100 एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में फैले इस मंदिर में सर्वत्र हरियाली नजर आती है। मंदिर की संरचना वृताकार है। मंदिर परिसर में देश की सभी प्रमुख नदियों से पानी लाकर सर्व तीर्थम सरोवर का निर्माण कराया गया है। मंदिर सुबह 4 बजे से आठ बजे अभिषेक के लिए और सुबह आठ बजे से रात्रि आठ बजे तक समान्य दर्शन के लिए खुला रहता है। मंदिर में आप लुंगी, शॉर्ट्स, नाइटी, मिडी, बरमूडा पहनकर नहीं जा सकते। इस मंदिर का निर्माण युवा संन्यासी शक्ति अम्मा ने कराया है। मंदिर का उदघाटन 24 अगस्त 2007 को हुआ। ये मंदिर सात साल में बनकर तैयार हुआ है। इस मंदिर के निर्माण के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का भी पूरा ख्याल रखा गया है। 100 एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में फैले इस मंदिर में सर्वत्र हरियाली नजर आती है। मंदिर की संरचना वृताकार है। इसके निर्माण में वास्तु का खास ख्याल रखा गया है जिससे प्रकृति के ज्यादा करीब नजर आता है। मंदिर परिसर में देश के सभी प्रमुख नदियों से पानी लाकर सर्व तीर्थम सरोवर का निर्माण कराया गया है।
दक्षिण भारत में भी बन चुका एक स्वर्ण मंदिर
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