संवैधानिक प्रावधानों में विचलन लोकतंत्र पर प्रहारः प्रणब मुखर्जी

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नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि शांति और सांप्रदायिक सद्भाव सुनिश्चित होना चाहिए। आजादी और समानता देश के सभी नागरिकों का संवैधानिक अधिकार हैं। अगर नागरिकों के इन अधिकारों का हनन होता है, तो यह देश के लोकतंत्र को कमजोर करेगा।

उन्होंने कहा, देश में शासन स्थापित करने के लिए संविधान एकमात्र दस्तावेज है। हर व्यक्ति संविधान को अपनी आजादी और समानता के लिए उत्तरदायी मानता है। अगर किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता का हनन होता है, तो वह संविधान की तरह ही देखता है। इसलिए संवैधानिक उसूलों और प्रावधानों से कोई छेड़छाड़ देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने को कमजोर करेगा। देश के नागरिकों की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बेहतरी को खतरे में डालेगा।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राज्यपालों के 46वें सम्मेलन में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि राज्यपालों और उपराज्यपालों की सबसे पहले यह जिम्मेदारी बनती है कि की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के मामले पूरी तरह संविधान की मूल भावना के अनुरूप संचालित हों।

मुखर्जी ने दो दिन के सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि शांति और सांप्रदायिक सद्भाव अवश्य ही सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य कैबिनेट मंत्री भी शामिल हुए।

मुखर्जी ने कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपने पड़ोसी देशों से दोस्ताना संबंध रखने को महत्ता देता है और जितने भी विवादित मुद्दे हैं उन्हें शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने में विश्वास रखता है।

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