कोलकाता, सौरव श्राफ : अगले साल होने वाले आम चुनावों को देखते हुए ममता बनर्जी ने दरअसल 512 पन्नों की एक ऐसी किताब जारी की है जिसमें राज्य की तृणमूल कांग्रेस सरकार के सात सालों की उपलब्धियों और कामकाज का बखान है लेकिन विपक्षी राजनीतिक दलों ने इसे सार्वजनिक धन की बर्बादी बताते हुए सरकार और मुख्यमंत्री की आलोचना की है। वैसे, तृणमूल कांग्रेस या पहले सत्ता में रही वाममोर्चा सरकारें भी चुनावों के मौके पर प्रचार पुस्तिकाएं छपवाती रही हैं। लेकिन पहली बार किसी सरकार ने अपने कामकाज के प्रचार के लिए इतनी मोटी किताब छपवाई है। ‘क्रॉनिकल्स ऑफ़ बंगाल्स प्रोग्रेस-7 इयर्स’ यानी ‘बंगाल की प्रगति का इतिहास- सात साल’ शीर्षक वाली ये किताब राज्य सरकार के सूचना और संस्कृति मंत्रालय ने छपवाई है ये मंत्रालय मुख्यमंत्री के ही ज़िम्मे है यूँ तो इसकी क़ीमत 100 रुपये रखी गई है लेकिन राज्य सचिवालय की ओर से तमाम मीडिया घरानों को इसकी एक-एक कॉपी मुफ़्त भेजी जा रही है। किताब की 13 पेज लंबी भूमिका मुख्यमंत्री ने ख़ुद ही लिखी है। इसे अनौपचारिक जामा पहनाते हुए आख़िर में उन्होंने अपने नाम की जगह सिर्फ़ ममता ही लिखा है उन्होंने अपने पद और उपाधि का जिक्र नहीं किया है। किताब में मुख्यमंत्री ने दावा किया है कि उनके नेतृत्व में पश्चिम बंगाल कई मामलों में अव्वल रहा है विकास और प्रशासनिक क्षेत्र में सरकार ने कहां-कहां और कितने झंडे गाड़े हैं। ममता की ये किताब इन्हीं उपलब्धियों को तस्वीरों, आंकड़ों और रंगीन ग्राफ़ के ज़रिये बयां करती है। राज्य के विपक्षी दलों ने सरकार के इस फ़ैसले की आलोचना करते हुए किताब को जनता के धन की बर्बादी करार दिया है। उनका कहना है कि तृणमूल कांग्रेस इस पैसे से अपना राजनीतिक हित साध रही है। माकपा की केंद्रीय समिति के सदस्य रबीन देब कहते हैं “मुख्यमंत्री किसानों की मौत, औद्योगिक विकास की कमी और बढ़ती बेरोजगारी जैसे ज्वलंत मुद्दों की अनदेखी कर रही हैं। ममता अपने राजनीतिक हितों को साधने पर ज़्यादा ध्यान दे रही हैं। खासकर वित्तीय तंगी से जूझ रही सरकार के लिए इतनी महंगी किताब का प्रकाशन संसाधनों की बर्बादी है। कांग्रेस नेता अब्दुल मन्नान इस किताब के प्रकाशन के औचित्य पर सवाल उठाते हैं वो कहते हैं किताब में कोई नई बात नहीं है। तमाम पुरानी योजनाओं को एक साथ रख दिया गया है।
ममता सरकार की वो किताब जिस पर छिड़ी ‘महाभारत’
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