जौनपुर, संदीप उपाध्याय : जिस घर में नित्य भागवत कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है। केवल पठन-श्रवण ही पर्याप्त नहीं। इसके साथ अर्थबोध, मनन, चिंतन, धारणा और आचरण भी आवश्यक है। उक्त बातें जलालपुर के बिबनमऊ ग्राम में पंडित राजेश मिश्रा का आवास पर चल रहे सात दिवसीय भागवत कथा में लखीमपुर खीरी से आये पंडित भारत प्रसाद शुक्ल ने कही उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत कल्पवृक्ष की ही तरह है। यह हमें सत्य से परिचय कराता है। कलयुग में तो श्रीमद् भागवत कथा की अत्यंत आवश्यकता है, क्योंकि मृत्यु जैसे सत्य से हमें यही अवगत कराता है। श्री शुक्ल ने राजा परीक्षित के सर्पदंश और कलयुग के आगमन की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि राजा परीक्षित बहुत ही धर्मात्मा राजा थे। उनके राज्य में कभी भी प्रजा को किसी भी चीज की कमी नहीं थी। एक बार राजा परीक्षित आखेट के लिए गए, वहाँ उन्हें कलयुग मिल गया। कलयुग ने उनसे राज्य में आश्रय माँगा, लेकिन उन्होंने देने से इनकार कर दिया। बहुत आग्रह करने पर राजा ने कलयुग को तीन स्थानों पर रहने की छूट दी। इसमें से पहला वह स्थान है जहाँ जुआ खेला जाता हो, दूसरा वह स्थान है जहाँ पराई स्त्रियों पर नजर डाली जाती हो और तीसरा वह स्थान है जहाँ झूठ बोला जाता हो। लेकिन राजा परीक्षित के राज्य में ये तीनों स्थान कहीं भी नहीं थे। तब कलयुग ने राजा से सोने में रहने के लिए जगह माँगी। जैसे ही राजा ने सोने में रहने की अनुमति दी, वे राजा के स्वर्णमुकुट में जाकर बैठ गए। राजा के सोने के मुकुट में जैसे ही कलयुग ने स्थान ग्रहण किया, वैसे ही उनकी मति भ्रष्ट हो गई। कलयुग के प्रवेश करते ही धर्म केवल एक ही पैर पर चलने लगा। लोगों ने सत्य बोलना बंद कर दिया, तपस्या और दया करना छोड़ दिया। अब धर्म केवल दान रूपी पैर पर टिका हुआ है।इस मौके पर हरिशंकर चौबे, महातिम सिंह, रणविजय सिंह, सुरेंद्र मिश्रा,बबलू उपाध्याय ,आदित्य पांडेय, बालकृष्ण चतुर्वेदी,सुनील मिश्रा, अवनीश पाण्डेय ज्ञानु सिंह मुन्ना राजभर आदि लोग मौजूद रहे।
जिस घर में नित्य भागवत कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है —-भारत प्रसाद शुक्ल
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