एसिड अटैक में सिर्फ 30 दिन की सजा, सुप्रीम कोर्ट ने रद किया हाईकोर्ट का आदेश

News Publisher  

नई दिल्ली/नगर संवाददाताः युवा लड़की पर तेजाब से हमले के गंभीर अपराध में सिर्फ 30 दिन के कारावास को पर्याप्त सजा मानने के हाईकोर्ट के फैसले पर कड़ी टिप्पणी करते हुए सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि ऐसे तो न्याय न सिर्फ बहिष्कृत हुआ बल्कि अनौपचारिक रूप से वानप्रस्थ चला गया। इसकी कतई इजाजत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने सख्त लफ्जों में हाईकोर्ट का फैसला रद करते हुए तेजाब हमले के दोषी को एक साल का कारावास और पचास हजार रुपये पीडि़ता को मुआवजा अदा करने की सजा सुनाई है। इतना ही नहीं कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार को भी पीडि़ता को 3 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। ये आदेश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा व न्यायमूर्ति आर. भानुमति की पीठ ने पीडि़त लड़की की याचिका स्वीकार करते हुए दिया। इस मामले में विजयनगरम की सत्र अदालत ने दोषी को एक साल के कारावास और 6000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। लेकिन हाईकोर्ट ने सजा घटा कर काटी जा चुकी जेल तक सीमित कर दी थी जो कि मात्र 30 दिन ही थी। पीडि़ता ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी थी और तेजाब हमले जैसे गंभीर अपराध में मात्र 30 दिन की कैद पर सवाल उठाए थे। सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि इस मामले को देखने से सवाल उठता है कि हाईकोर्ट को सजा के सिद्धांत की जानकारी थी या फिर हाईकोर्ट व्यक्ति के प्रति दया की धारणा से संचालित हो रहा था और उसने पीडि़ता के दर्द को पूरी तरह नजर अंदाज कर दिया। पीठ ने कहा कि एक युवा लड़की जिस पर तेजाब हमला हुआ हो, उस पर हमले के निशान हमेशा के लिये रह गये। कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त दोषी तो माना जा चुका है सवाल सिर्फ सजा की मात्रा पर है। क्या दी गयी सजा पर्याप्त है। पूर्व फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि सजा देने का मूल उद्देश्य होता है कि अभियुक्त ये समझे कि उसने जो अपराध किया है उससे सिर्फ पीडि़त के जीवन पर ही असर नहीं पड़ा है बल्कि उससे सामाजिक तानाबाना भी प्रभावित हुआ है। कोर्ट ने सजा तय करने के तीन दशक के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सजा अपराध की प्रकृति, तरीके और उसमें की गई क्रूरता के आधार पर तय होती है। मौजूदा मामला अभियुक्त के हृदयहीन और असभ्य अपराध का एक उदाहरण है। इस तरह के अपराध में दया की अवधारणा कतई नहीं स्वीकारी जा सकती। हो सकता है कि शादी से इन्कार करने को अभियुक्त ने अपने अहम से जोड़ा हो और उससे उसे बदला लेने का विचार आया हो, स्थित कोई भी रही हो लेकिन वो किसी तरह की नरमी का हकदार नहीं है। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का फैसला चौकाने वाला है। एक युवा लड़की पर तेजाब हमला हुआ है। दोष साबित हुआ है उसके बाद सजा घटा कर काटी जा चुकी जेल तक सीमित करने का कोई न्यायोचित आधार नही हो सकता। उन्हें समझ नहीं आता कि सजा घटाते वक्त हाईकोर्ट के जज दया की धारणा में बह गये या फिर सजा देने के सिद्धांत से बेपरवाह रहे या फिर कोर्ट से कानून के मुताबिक न्याय पाने का इंतजार कर रहे समाज की अपेक्षाओं के प्रति सजग नहीं थे। पीठ ने कहा कि इन परिस्थितियों को देखते हुए वे हाईकोर्ट का फैसला रद करते हैं और दोषी को एक साल की सजा और जुर्माना देने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल करते हैं। कोर्ट ने दोषी को 50000 रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया और अगर वह मुआवजा नहीं देता तो छह महीने और कैद काटेगा। इसके अलावा कोर्ट ने राज्य सरकार को भी 3 लाख रुपये पीडि़ता को मुआवजा देने का आदेश दिया है। मुआवजे की राशि तीन महीने के भीतर दी जाएगी। एक युवा लड़की पर एसिड अटैक के गंभीर अपराध में अगर 30 दिन के कारावास की सजा दी जाती है तो, न्याय न सिर्फ बहिष्कृत हुआ बल्कि अनौपचारिक तौर पर वानप्रस्थ भेज दिया गया। इसकी कतई इजाजत नहीं दी जा सकती।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *