खाटू श्याम धाम

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खाटू श्याम नगरी सनातन मतावलम्बियों के लिये आस्था का धाम हैं यह धाम भीम-पौत्र बर्बरीक के जीवन प्रसंग से जुड़ा है। बर्बरीक को भारतीय धार्मिक साहित्य में सुहृदय, सि( सैन, सि(ेश्चर्य, सूर्यावर्चा, चाण्डिल, श्याम-प्रभु, भीम-पौत्र आदि नामों से जाना जाता है।  इसके अलावा तीन बाणधारी, शीश के दानी, नीले के अवतार आदि पर्याय नाम भी उनके जीवन प्रसंग से जुड़े हैं।

महाभारत के यु( में बर्बरीक ने अपनी उपस्थिति से सभी को विस्मय में डाल दिया था। प्रत्येक पक्ष यह सोचने लगा था कि बर्बरीक यु( में किसका साथ देगा। भीम-पौत्र के समक्ष जब अर्जुन तथा भगवान श्रीकृष्ण उसकी वीरता का चमत्कार देखने के लिए उपस्थित हुए थे तब बर्बरीक ने अपनी वीरता का छोटा सा नमूना मात्र ही दिखाया था कि उससे स्वयं सुदर्शन चक्रधारी चिन्तित हो गये थे। भगवान श्रीकृष्ण यहबात जानते थेकि बर्बरीक प्रतिज्ञाब(वश हारने वाले का साथ देगा।
इसलिये श्रीकृष्ण यह नहीं चाहते थे कि बर्बरीक परिस्थितिजन्य कौरवों का साथ दे। अगर वह ऐसा करेगा तब तो पाण्डवों को लिए विजय दुर्भर हो जायेगी, इसलिये भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी चमत्कारीक बातों से प्रभावित कर उसका शीश रणभूमि में दान में ले लिया। बर्बरीक द्वारा अपने पितामह पाण्डवों की विजय हेतु स्वेच्छा के साथ गर्वोन्मत अवस्था में शीश दान करने के पश्चात्‌ जब प्रभु श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वर एवं भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने की सक्षमता प्रदान की। तब बर्बरीक श्रीकृष्ण की इस सहृदयता से प्रसन्न हुआ। उसके कटे हुए सिर से महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा भगवान श्रीकृष्ण के आगे प्रकट की जिसको भगवान श्रीकृष्ण ने सहजता से पूर्ण किया।
श्री खाटू श्याम मंदिर जयपुर से उत्तर दिशा में वाया रींगस होकर 80 किलोमीटर दूर पड़ता है। रींगस पश्चिमी रेलवे का जंक्शन है। श्री खाटू श्याम जी आने हेतु मुख्य रास्ता यही पड़ता है दिल्ली, अहमदाबाद, जयपुर आदि से आने वाले यात्रियों को पहला पड़ाव रींगस ही होता है। रींगस से सभी भक्तजन खाटू-श्याम-धाम पैदल अथवा जीपों, बसों आदि द्वारा प्रस्थान करते हैं। रींगस से केवल मात्र 17 किलोमीटर मात्र दूर है।
खाटू नगर की पौराणिक पृष्ठभूमि : खाटू की स्थापना राजा खट्टवांग ने की थी। खट्टवां ने ही बभ्रुवाहन ;बर्बरीकद्ध के देवरे में सिर की प्राण प्रतिष्ठा करवाई थी। इतिहासविद् एवं पत्रकारिता के पुरोधा पंडित झाबरमल शर्मा भी उक्त अवधारणा के समर्थक रहे हैं।
खाटू की स्थापना के विषय में अन्य मत भी प्रचलित है। कई विद्वान इसे महाभारत के पहले का मानते हैं तो कई इसे ईसा पूर्व का लेकिन कुल मिलाकर विद्वानों की एकमत राय है कि बभु्रवाहन के देवरे में सिर की प्रतिमा की स्थापना महाभारत के पश्चात्‌ हुई। श्याम कुंड, गौरीशंकर मंदिर, सीताराम मंदिर सहित आस-पास अनेक दर्शनीय स्थल देखें जा सकते हैं।

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