नई दिल्ली, नगर संवाददाता: यदि केंद्र वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ किरपाल को दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर पदोन्नत करने की उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिश को स्वीकार कर लेता है, वह देश के किसी उच्च न्यायालय के खुले तौर पर पहले समलैंगिक न्यायाधीश बन सकते हैं।
हालांकि, उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने हाल में किरपाल को दिल्ली उच्च न्यायालय की पीठ में पदोन्नत करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जो उनके यौन झुकाव के कारण विवाद का विषय था, लेकिन पदोन्नति केंद्र की मंजूरी के अधीन होगी।
किरपाल (49) उस कानूनी टीम का हिस्सा थे, जिसने उस ऐतिहासिक मामले में कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया था, जिसमें शीर्ष अदालत ने एक ही लिंग के दो वयस्कों के बीच सहमति से यौन क्रिया को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।
उन्हें इस साल मार्च में वरिष्ठ अधिवक्ता पद से नवाजा गया था। ऐसा कहा जाता है कि इसके लिए उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय के सभी 31 न्यायाधीशों से वोट प्राप्त हुए थे।
वह 2002 में प्रधान न्यायाधीश रहे भूपिंदर नाथ किरपाल के पुत्र हैं।
उन्होंने ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों से कानून की पढ़ाई की है तथा दो दशक से अधिक समय से वकालत कर रहे हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय कॉलेजियम ने 2017 में किरपाल की पदोन्नति की सिफारिश की थी। इसके बाद उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने भी इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी।
हालाँकि, केंद्र ने उनके कथित यौन झुकाव का हवाला देते हुए उनकी सिफारिश पर आपत्ति जताई थी।
उनके नाम की सिफारिश और केंद्र की कथित आपत्ति को लेकर पिछले चार साल से न्यायिक गलियारों में व्यापक चर्चा होती रही है।
दिल्ली उच्च न्यायालय में 60 न्यायाधीशों के स्वीकृत पद हैं और वर्तमान में यह 30 न्यायाधीशों के साथ काम कर रहा है।
केंद्र ने कॉलेजियम की सिफारिश मानी तो किरपाल बन सकते हैं उच्च न्यायालय के पहले समलैंगिक न्यायाधीश
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