कोविड-19 टीकों के क्लीनिकल ट्रायल पर डेटा के खुलासे के अनुरोध वाली अर्जी पर सुनवायी 29 नवंबर को

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नई दिल्ली, नगर संवाददाता: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि उस याचिका पर सुनवाई वह 29 नवंबर को करेगा जिसमें कोविड-19 के टीकों के क्लीनिकल ट्रायल के साथ-साथ टीकाकरण के बाद के प्रतिकूल मामलों पर डेटा के खुलासे के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

शीर्ष अदालत ने इससे पहले गत अगस्त में केंद्र, भारत बायोटेक, एसआईआई और अन्य को उस याचिका पर जवाब मांगा था जिसमें प्रतिकूल मामलों के संबंध में टीकाकरण के बाद के आंकड़ों का खुलासा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

चूंकि न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति ए एस ओका की पीठ, जो मामले की सुनवाई करने वाली थी, दिन की लिए उठने वाली थी, याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने याचिका का उल्लेख किया और सुनवाई के लिए कोई तारीख देने का आग्रह किया। उन्होंने दावा किया कि किसी के टीका नहीं लगाने पर सरकार द्वारा जारी किए जा रहे जबरदस्ती टीकाकरण के आदेश के कारण लोग नौकरी खो रहे हैं।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका कड़ा विरोध किया और कहा कि याचिकाकर्ता एक ऐसा आदेश चाहते है कि टीके नहीं लगाए जाने चाहिए। हालांकि, भूषण ने कहा कि ऐसा नहीं है और वह ऐसा बिल्कुल नहीं कह रहे हैं।

मेहता ने कहा कि उन्हें जवाब देने के लिए तीन सप्ताह का समय चाहिए और कहा, ‘‘देश को उस रास्ते पर चलने दिया जाए जिस पर वह जाना चाहता है।’’ मेहता ने कहा, ‘‘मैं अपना जवाब दाखिल करूंगा और इसके लिए समय चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम नहीं जानते कि वह (भूषण) इस मामले में किसके हित का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।’’

भूषण ने कहा कि तीन महीने बीत चुके हैं और उन्होंने डॉ. जैकब पुलियेल की याचिका पर अपना जवाब दाखिल नहीं किया है, जो टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के पूर्व सदस्य हैं और प्रतिकूल मामलों के संबंध में टीकाकरण के बाद के आंकड़ों का खुलासा करने के निर्देश का अनुरोध किया है।

उन्होंने पहले कहा था कि यह कोई टीका-विरोधी याचिका नहीं है और इस मुद्दे पर पारदर्शिता की आवश्यकता है क्योंकि डेटा के खुलासे से सभी संदेह दूर हो जाएंगे।

भूषण ने यह स्पष्ट करते हुए कि याचिकाकर्ता चल रहे टीकाकरण को रोकने का अनुरोध नहीं कर रहे थे। उन्होंने कहा था कि याचिका में जबरन टीकाकरण आदेश जारी किए जाने का मुद्दा उठाया गया है जैसे कि अगर किसी को टीका नहीं लगाया गया है तो यात्रा पर कुछ तरह की रोक लगाना।

शीर्ष अदालत ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) सहित केंद्र और अन्य को नोटिस जारी करके चार सप्ताह के भीतर याचिका पर उनके जवाब मांगे थे।