नई दिल्ली, नगर संवाददाता: उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले मीठे पानी का 70 फीसदी हिस्सा केवल कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में खप जाता है। ये संयंत्र जरूरत से ज्यादा पानी खर्च कर रहे हैं, इनमें नियमों का पालन भी नहीं किया जा रहा है। विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (सीएसई) ने अपने हालिया अध्ययन रिपोर्ट में यह खुलासा किया है।
संस्था द्वारा जारी की गई रिपोर्ट वाटर इनएफीसिएंट पावर के मुताबिक वर्ष 2015 में निर्धारित पानी उपभोग नियमों का इन संयंत्रों ने पालन नहीं किया। यहां तक कि दुनिया के अन्य देशों के बिजली संयंत्रों की तुलना में ये दोगुना ज्यादा पानी की खपत करते हैं। संस्था के अनुसार नियमों के मुताबिक एक जनवरी 2017 से पहले स्थापित बिजली संयंत्रों को एक मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए 3.5 क्यूबिक मीटर से ज्यादा पानी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, जबकि एक जनवरी 2017 के बाद स्थापित बिजली संयंत्रों को प्रति मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए तीन क्यूबिक मीटर से ज्यादा पानी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इसके लिए बिजली संयंत्रों को ऐसे उपकरणों का इस्तेमाल करना होता है, जिससे पानी की खपत को कम किया जा सके। समुद्र के पानी का इस्तेमाल करने वाले संयंत्रों को इससे छूट हासिल है।
सीएसई के औद्योगिक प्रदूषण ईकाई में कार्यक्रम समन्वयक निवित कुमार यादव ने बताया कि यह इसलिए भी ज्यादा परेशानी भरा है, क्योंकि इनमें से कई बिजली संयंत्र ऐसे जिलों में स्थित हैं, जहां पहले से पानी की किल्लत है। संस्था ने कुल 154 गीगावाट बिजली पैदा करने वाले संयंत्रों का सर्वे किया और पाया कि इनमें से 50 फीसदी में पानी उपभोग नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है।
नियमों का पालन नहीं करने में राज्य नियंत्रित बिजली संयंत्रों की हिस्सेदारी निजी संयंत्रों की तुलना में ज्यादा है। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में इस तरह के संयंत्रों की संख्या ज्यादा है। सीएसई के मुताबिक पानी की बहुत ज्यादा खपत करने वाले 48 फीसदी कोयला आधारित बिजली संयंत्र ऐसे जिलों में हैं, जहां पहले से पानी की किल्लत है। इसमें नागपुर और चंद्रपुर, रायचूर, कोरबा, बाड़मेर, बारान, खम्मम, कोथागुदेम और क्यूड्लोर आदि जिले शामिल हैं।