नई दिल्ली, नगर संवाददाता: हिमाचल प्रदेश के मंडी स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के अनुसंधानकर्ताओं ने पानी से भारी धातुओं को अलग करने के लिए बायोपोलीमर आधारित सामग्री से एक तंतुमय झिल्ली तैयार की है। शोध प्रतिष्ठित इल्सेवियर पत्रिका पोलीमर में प्रकाशित हुआ है। अब अनुसंधान दल ने भारी मात्रा में धातुओं से संदूषित पानी से निपटने के लिए इस प्रौद्योगिकी को औद्योगिकी स्तर पर ले जाने की योजना है। खनन मंत्रालय ने इस अनुसंधान के लिए वित्तपोषण किया।
इस शोध का आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर सुमित सिन्हा राय, शोधवेत्ता आशीष काकोरिया और शिकागो के इलिनियोस विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर सुमन सिन्हा राय ने एकसाथ किया है। सुमित सिन्हा राय ने कहा, अम्लीय खनन निकास नली में भारी मात्रा में धातु वाकई एक समस्या है। पानी में भारी धातु से इंसान में अल्झाइमर, पार्किंसन समेत कई स्नायु एवं स्क्लेरोसिस समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे में जलाशयों में छोड़े जाने वाले दूषित जल का शोधन करना बेहद अहम है। पानी में भारी धातु का प्रदूषण गंभीर चिंता है।
उन्होंने कहा कि देश में गंगा बेसिन में ऑर्सेनिक एक बड़ी समस्या है। भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की रिपोर्ट बताती है कि पर्यावरण पर बोझ एवं स्वास्थ्य प्रभावों के लिहाज से भारत में बड़ी खतरनाक धातु सीसा, पारा, क्रोमियम, कैडमियम, तांबा एवं अल्युमिनियम हैं जो खनन, विनिर्माण, इलेक्ट्रोप्लेटिंग, इलेक्ट्रोनिक्स एवं उर्वरक उत्पादन आदि भी पानी में छोड़ दिए जाते हैं। प्रोफेसर राय के अनुसार, इन झिल्लियों में अवशोषक सामग्री होती हैं जो धातु को अपनी ओर खींच लेती हैं।