आचार्य श्री महाप्रज्ञ का प्रेक्षाध्यान पद्धति मनुष्यों के लिए शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन का वरदान: सुखजिंद्रर सिंह रंधावा

News Publisher  

जगराओ, चंडीगढ़, रमन जैन: शांति एवं सदभावना की निरंतर प्रेरणा देने वाले आचार्य श्री महाप्रज्ञ द्वारा प्रवर्तित प्रेक्षाध्यान पद्धति जहां मानसिक तनाव और अवसादग्रस्त मनुष्यों के लिए शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन का वरदान है, वहां जीवन.विज्ञान शिक्षा के क्षेत्र में भावनात्मक विकास का अभिवन अनुदान है। आध्यात्मिक.वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण, ‘अहिंसा प्रशिक्षण, तथा सापेक्ष अर्थशास्त्र की संकल्पना उनके उर्वर मस्तिष्क से उपजे हुए अवदान है। व्यष्टि और समष्टि को त्राण और प्राण देने में समर्थ इन अवदानों में उनकी अलौकिक अतीन्द्रिय चेतना का साक्षात्कार होता है। ये शब्द पंजाब कैबिनेट मंत्री सुखजिंद्रर सिंह रंधावा ने मनीषी संत मुनि श्री विनय कुमार जी, आलोक से विचार विमर्श करते हुए कहे।
उन्होंने कहा कि जहां युगीन समस्याओं के समाधान के लिए स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ समाज एवं स्वस्थ अर्थ-व्यवस्था का सूत्र प्रस्तुत किया, वहीँ दूसरी ओर अपने आध्यात्मिक चिंतन एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बौद्धिक और वैज्ञानिक जगत को प्रभावित किया। उनके द्वारा दी गई शांति मिसाइल के निर्माण की अभिप्रेरणा भारत के महान वैज्ञानिक डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के जीवन का मिशन बनी हुई थी।
जीवन के संघर्ष का हासिल उसकी योग्यता से कहीं अधिक उस जज्बे से होता हैए जिसे हम यकीन कहते हैं. खुद में यकीन. अक्सर लोग कहते हैं कि उन्हें किसी में बड़ा भरोसा है। उस पर बहुत विश्वास है, उनसे दो मिनट बात कीजिए तो पता चल जाएगा कि उन्हें खुद पर कितना कम यकीन है। जिसे खुद पर ही यकीन नहीं. वह दूसरे को क्या और कितना समझेगा, यह कहने की जरूरत नहीं! इसलिए हमें दुनिया को जानने के मिशन, दावों पर निकलने से पहले अपने बारे में निश्चित होने की जरूरत है. हमारे सुख, प्रसन्नता, ‘जीवन-आनंद’ के सारे रास्ते यहीं से होकर जाते हैं।, हम तर्क की गलियों में भटकने लगते हैं। खुद के लिए कोई महफूज कोना खोजने में जुट जाते हैं. इससे हम आखिर में साबित कर देते हैं कि मैं खुद को बहुत अच्छे से जानता हूं. आपको ऐसे लोग भी मिल जाएंगे जो हर दूसरी बात पर यह दावा करते नजर आ जाएंगे कि मैं दूसरों को तो नहीं लेकिन खुद को अच्छे से समझोता जानता हूं। ये शब्द मनीषी संत मुनि श्री विनय कुमार जी, आलोक ने कहे।
मनीषी श्री संत ने आगे कहा हमें दुनिया को जानने के मिशन, दावों पर निकलने से पहले अपने बारे में निश्चित होने की जरूरत है। हमारे सुख, प्रसन्नता, ‘जीवन-आनंद’ के सारे रास्ते यहीं से होकर जाते हैं। हम खुद के बारे में कितना जानते हैं। अक्सर इस बात का जवाब कुछ यूं मिलता है कि सवाल करने वाले का हौसला ही खत्म हो जाता है. हम कितना दावा करते हैं कि हम अपने बारे में बहुत कुछ जानते हैं, लेकिन अक्सर यह दावा गलत साबित होता है। कमाल की बात तो यह होती है कि जब.जब दावा गलत साबित होता है मेरा यहां विनम्र निवेदन है कि इस बात के लिए थोडा ठहरिए, सोचिए कि हम स्वयं को कितना कम जानते है। इसीलिए जिंदगी के चौराहे में अक्सर ऐसी दिशा में मुड़ जाते हैं जो हमारे स्वभाव, नजरिए के एकदम उल्ट होती है. हम होते इतने नरम हैं कि हवा का झोका हमें पलट दे और रास्ता बर्फीला पकड़ लेते हैं, तो कहीं दिखेगा कि तूफानों को हराने वाला ऐसी नाव में सवार हो गया जो उसे महासागर तो दूर ‘झुमरी तलैया’ भी पार नहीं करा सकती। अपने को जानना ‘ दुनिया’ को जानने से कहीं अधिक मुश्किल, जरूरी है. इससे सही नदी, नाव और किनारे को पहचानने में आसानी होती है। दूसरों को पहचानने में गलती को सुधारा जा सकता है, लेकिन स्वयं के प्रति हुई चूक को सुधारने का मौका मिलना आसान नहीं।
मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया शिक्षक को होना चाहिए विद्रोही. कौन सा विद्रोह है? मकान में आग लगा दें आप, या कुछ और कर दें या जाकर ट्रेनें उलट दें या बसों में आग लगा दें। उसको नहीं कह रहा हूं, कोई गलती से वैसा न समझ लें। मैं यह कह रहा हूं कि हमारे जो मूल्य हैं, हमारी जो वैल्यूज हैं उनकी बाबत विद्रोह का रुख, विचार का रुख होना चाहिए कि हम विचार करें कि यह मामला क्या है। जब आप एक बच्चे को कहते हैं कि तुम गधे हो, तुम नासमझ हो, तुम बुद्धिहीन हो, देखो उस दूसरे को, यह कितना आगे है! तब आप विचार करें, तब आप विचार करें कि यह कितना दूर तक ठीक है और कितने दूर तक सच है। क्या दुनिया में दो आदमी एक जैसे हो सकते हैं? क्या यह संभव हुआ है? हर आदमी जैसा है, अपने जैसा है, दूसरे आदमी से कंपेरिजन का कोई सवाल ही नहीं। किसी दूसरे आदमी से उसकी कोई कंपेरिजन नहीं, कोई तुलना नहीं है।

WhatsApp Image 2021-01-14 at 6.08.17 PM

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *