नई दिल्ली, नगर संवाददाता: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को दिल्ली सरकार को हलफनामा दायर कर यह बताने का निर्देश दिया कि शहर में रोग निदान प्रयोगशालाओं को किस तरह विनियमित किया जा रहा है और क्या अवसंरचना संबंधी उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है।
न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अनधिकृत प्रयोगशालाओं और नैदानिक केंद्रों का प्रबंधन अयोग्य तकनीशियनों द्वारा किया जा रहा है। इसने दिल्ली सरकार से एक सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने को कहा।
पीठ ने याचिका दायर करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता बेजोन कुमार मिश्रा को प्रयोगशालाओं की गलत चिकित्सा रिपोर्ट संबंधी “उदाहरण” दिखाने को कहा और मामले को 17 दिसंबर को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
दिल्ली सरकार के वकील गौतम नारायण ने कहा कि चिकित्सीय प्रतिष्ठान नियम, 2018 के तहत रोग निदान प्रयोगशालाओं को विनियमित किया जा रहा है और मौजूदा व्यवस्था के तहत स्नातकोत्तर शिक्षा हासिल करने वाले ‘रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर’ द्वारा सभी चिकित्सा रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किए जाने चाहिए।
उन्होंने कहा कि अधिकारी यह सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठा रहे हैं कि जनता पीड़ित न हो और दोषी प्रयोगशालाओं के खिलाफ शिकायतों पर कार्रवाई की जा रही है।
अदालत ने दिल्ली सरकार से कहा कि संबंधित नियम के अनुपालन पर एक पन्ने का शपथपत्र दाखिल करिए।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील शशांक देव सुधी ने कहा कि वर्तमान में शहर में रोग निदान प्रयोगशालाएं विनियमित नहीं हैं जो नागरिकों के जीवन के लिए खतरा हैं।
रोग निदान प्रयोगशालाओं को किस तरह विनियमित किया जा रहा हैः उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार से पूछा
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