नई दिल्ली, नगर संवाददाता: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह सेना की विधि शाखा ‘जज एडवोकेट जनरल’ (जेएजी) में शादीशुदा लोगों को शामिल करने पर रोक को चुनौती देने वाली याचिका पर 11 जनवरी को सुनवाई करेगा।
चीफ जस्टिस डी.एन. पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह ने इस याचिका पर जल्द सुनवाई करने का याचिकाकर्ता कुश कालरा का अनुरोध स्वीकार कर लिया और केंद्र सरकार को कोई भी अतिरिक्त हलफनामा दायर करने की इजाजत दे दी। बेंच ने कहा कि मामले को 11 जनवरी 2022 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए। अगर प्रतिवादी (केंद्र) कोई हलफनामा दायर करना चाहता है तो वह कर सकता है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि अधिकारियों ने नए विज्ञापन जारी किए हैं और युवा विधि स्नातकों से जेएजी पद के लिए आवेदन मांगे हैं। आवेदन में जल्द सुनवाई का आग्रह करते हुए कहा गया है कि इस मामले को लंबे समय तक लंबित रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा और उक्त रिट याचिका के लंबित होने के कारण कई योग्य युवा विवाहित विधि स्नातक भारतीय सेना में अपनी वैवाहिक स्थिति के आधार पर जज एडवोकेट जनरल शाखा में शॉर्ट सर्विस कमीशन (शामिल होने) से वंचित हैं, खासकर महिलाएं।
वर्ष 2019 में, केंद्र ने हाईकोर्ट को बताया था कि विवाह का अधिकार, मौलिक अधिकार नहीं है और संविधान के तहत जीवन के अधिकार के दायरे में नहीं आता है। उसने दलील दी थी कि जेएजी विभाग या सेना की किसी अन्य शाखा में वैवाहिक स्थिति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है।
केंद्र ने एक हलफनामे में कहा था कि यह रोक पुरुष और महिला, दोनों पर है, क्योंकि शाखा में शामिल करने से पहले होने वाला प्रशिक्षण काफी कड़ा है और उनके शाखा में शामिल होने के बाद शादी करने या बच्चे पैदा करने पर कोई रोक नहीं है।
वर्ष 2017 तक शादीशुदा महिलाएं जेएजी विभाग में भर्ती के लिए योग्य नहीं होती थीं, लेकिन पुरुषों पर ऐसी कोई रोक नहीं थी। मगर 2016 में कालरा ने महिला अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव को लेकर इस नीति को चुनौती दी। इसके बाद सरकार ने अगस्त 2017 में इसमें बदलाव किया और पुरुष और महिला दोनों पर यह रोक लगा दी।
इसके बाद कालरा ने एक नई याचिका दायर कर विवाहित लोगों के प्रति कथित ‘भेदभाव’ को चुनौती दी। यह याचिका 2018 में वकील चारू वली खन्ना ने दायर की थी।