नई दिल्ली, नगर संवाददाता: दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के कारण अस्पतालों में साँस के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। वायु प्रदूषण के कारण मरीज न केवल साँस, दमा व एलर्जी संबंधी तत्कालीन दुष्प्रभाव झेलते हैं बल्कि इसके दूरगामी प्रभाव कैंसर, मानसिक रोग, बाँझपन, कार्यक्षमता में कमी व असामयिक मृत्यु के रूप में सामने आने लगे हैं। यह कहना है स्वामी दयानंद अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी व चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ ग्लैडबिन त्यागी का। डॉ ग्लैडबिन त्यागी कहते हैं अभी अस्पतालों में जहां डेंगू के मरीज भरे हुए हैं वहाँ अब साँस के मरीज भी एमेरजेंसी में आ रहे हैं। विगत कई वर्षों में प्रदूषण के कारण मरीजों पर पड़ने वाले प्रभावों में काफी बदलाव आया है, जहाँ पहले केवल एक विशेष मौसम में साँस, अस्थमा,दमा, आँखों व चमड़ी मे एलर्जी के मरीज आते थे वहीं अब प्रदूषण द्वारा उत्पन्न हुई स्थिति से पूरे साल ऐसे मरीज परेशान रहते हैं।डॉ.त्यागी कहते हैं प्रदूषक तत्वों के कारण अस्थमा का अटैक साँस के मरीजों में अधिक गंभीर व घातक सिद्ध होता है , दुःखद बात ये है कि न तो प्रदूषण से बचाव की कोई दवाई है और न ही कोई टीका है। डॉ.त्यागी कहते हैं लोग साँस की बीमारियों से पीड़ित हैं उनके लिये प्रदूषण के मौसम में सावधानी बरतना बेहद आवश्यक है, साँस के मरीजों को सुबह व शाम की सैर बंद करके घर मे ही हल्का व्यायाम व प्राणायाम करें, बिना मास्क व अकारण बाहर न घूमें, दवाईयां समय से व नियमित रूप से लें। प्रदूषण के कारण जहाँ दिल्ली में व्यस्को की औसत आयु लगभग 8 वर्ष घट गई है वहीं बच्चों में जहरीली वायु गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ा रही है। प्रदूषण मानव सभ्यता के विकास का एक बेहद ही गंभीर दुष्परिणाम है इसलिए हर व्यक्ति को अपने स्तर पर प्रदूषण से बचने व इसकी रोकथाम के उपाय करने होंगे वरना इसका और अधिक दुष्प्रभाव असाध्य बीमारियों के रूप में देखने को मिलेगा।