किले में तब्दील हुई है श्रीनगर की एक बस्ती, माहौल है युद्ध का

News Publisher  

श्रीनगर/नगर संवाददाता : श्रीनगर में डाउनटाउन के बाद दूसरा सबसे तनावपूर्ण इलाका है सौरा। श्रीनगर से नौ किलोमीटर दूर यह अर्ध शहरी इलाका सुरक्षाबलों के लिए भी बेहद चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू.कश्मीर का विशेष दर्जा और अनुच्छेद 35ए खत्म करने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ कश्मीर घाटी में पहला विरोध प्रदर्शन इसी इलाके में हुआ था। 9 अगस्त को हुए इस प्रदर्शन मे तकरीबन 10 हजार लोग शामिल थे।

इलाके में स्थित ईदगाह में जुमे की नमाज के बाद हुए इस प्रदर्शन में एक बच्चे की मौत हो गई थी। सबसे पहले इसकी खबर बीबीसी ने दी थी। लेकिन केंद्र सरकार ने उसका खंडन करते उसे पूरी तरह मनगढ़ंत करार दिया था। बावजूद इसके बीबीसी अपने रुख पर कायम रहा। बाद में अन्य मीडिया संस्थानों को भी मजबूर होकर उस खबर को प्रकाशित-प्रसारित करना पडा। आखिर में गृह मंत्रालय को भी दबी जुबान से कुबूल करना पडा कि सौरा में कुछ लोग सडकों पर आए थे और उन्होंने नारेबाजी की थी।
सौरा में किसी भी गैर कश्मीर पत्रकार के लिए जाना बेहद चुनौती और जोखिम भरा है, क्योंकि वहां के लोग खासकर नौजवान मुख्यधारा के मीडिया खासकर टीवी चैनलों से बेहद खफा हैं। उनका कहना है कि राष्ट्रीय स्तर के तमाम चैनल और ज्यादातर अखबार सरकार के कश्मीर के बारे झूठी खबरें प्रकाशित-प्रसारित कर रहे हैं। वे कश्मीर की हकीकत पेश करने के बजाय वही सब कुछ पेश कर रहे हैं, जो सरकार चाहती है।

इस इलाके में जाना हमारे लिए भी आसान नहीं रहा। अव्वल तो हमारे साथ वहां जाने के लिए कोई स्थानीय पत्रकार तैयार ही नहीं हुआ। हमारी यात्रा के दूसरे दिन प्रेस क्लब में मौजूद कुछ स्थानीय पत्रकारों से बातचीत के दौरान संयोग से एक पत्रकार खुद ही हमें अपने साथ अगले दिन सौरा चलने का प्रस्ताव दिया। लेकिन अगले दिन जिस समय हमें वहां जाना था, उस पत्रकार ने आकर बताया कि आज वहां जाना ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि कल रात वहां सुरक्षाबलों और स्थानीय युवकों के बीच झडप होने की वजह से माहौल बेहद गर्म है। हम लोगों के सामने कोई विकल्प नहीं था, लिहाजा हम लोगों ने उस दिन सौरा जाना मुल्तवी किया और अगले दिन वहां गए।

दरअसल सौरा एक विशाल और सघन बस्ती है, जिसमें प्रवेश करने के सात रास्ते हैं। बस्ती में गलियां ही गलियां हैं बिलकुल भूलभुलैया की तरह। सौरा के युवकों ने सातों रास्तों को तरह-तरह की जुगाड़ से इस तरह बंद कर रखा है कि सुरक्षाबलों के लिए बस्ती में प्रवेश करना आसान नहीं है। कहीं पेड़ काटकर गिरा दिए हैं, तो कहीं रिलायंस समूह की जियो मोबाइल कंपनी द्वारा बिछाई जा रही भूमिगत केबल को उखाडकर उनसे रास्ते को बंद कर दिया गया है, कहीं रास्ते को इस तरह खोद दिया गया है कि सुरक्षा बलों के वाहन बस्ती में प्रवेश न कर सकें।

कुल मिलाकर पूरी बस्ती एक किले में तब्दील कर दी गई है और बस्ती के बाहर भारी मात्रा में सुरक्षाबल तैनात हैं। स्थानीय लोगों के बस्ती में आने-जाने के लिए अलग से कुछ गुप्त रास्ते बनाए गए हैं, जिनकी जानकारी सिर्फ इलाके के लोगों को ही है।

स्थानीय पत्रकार की कार में बैठकर कर सौरा पहुंचे थे। चूंकि सभी रास्ते ब्लॉक कर रखे थेए लिहाजा हमारी कार भी बस्ती के बाहर ही खड़ी कर दी गई थी। हमें सुरक्षाबलों की निगाह से बचने बस्ती के भीतर जाने के लिए करीब डेढ़ किलोमीटर पैदल चलना पडा। स्थानीय लोगों के मुताबिक बस्ती में प्रवेश करने के सभी रास्तों को बंद करने का मकसद सुरक्षाबलों को बस्ती में घुसने से रोकना है, क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि सुरक्षा बलों के जवान एकाएक बस्ती में धावा बोल देते हैं।

सीआरपीएफ के जवान बस्ती में आते हैं तो तलाशी के नाम पर किसी भी घर में घुस जाते हैं और मनमानी करते हैं। वे न सिर्फ लोगों के साथ मारपीट करते हैं, बल्कि जवान लड़कियों के साथ भी बदसुलूकी करते हैं। ऐसी स्थिति में महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को बाहर निकलकर भागना पड़ता है। फिर दोनों पक्षों के बीच टकराव शुरू हो जाता है। एक तरफ से पथराव होता है तो दूसरी तरफ से पैलेट गन चलाई जाती हैं। इस तरह के संघर्ष में 100 से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। एक तरह से यहां आम लोगों और सुरक्षाबलों के बीच युद्ध जैसा माहौल है।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण ‘वेबदुनिया’ के नहीं हैं और ‘वेबदुनिया’ इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *