नई दिल्ली/नगर संवाददाताः दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि यहां सार्वजनिक कार्यक्रमों के दौरान कथित तौर पर आत्महत्या करने वाले दो लोगों के परिजनों को मुआवजा देने का आप सरकार का फैसला गलत मिसाल पेश करेगा। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्त सी हरि शंकर की पीठ ने दिल्ली सरकार को सलाह दी कि ऐसे लोगों को ‘शहीद’ का दर्जा देने के फैसलों को वापस लिया जाए। पीठ ने कहा, ‘पैसा करदाताओं का है।’ पीठ ने कहा, “आपका आदेश दूसरों के लिए गलत मिसाल पेश करेगा. इसे दूसरों के लिए उदाहरण के तौर पर पेश किया जा सकता है जो यही काम करते हैं। आप इसे वापस क्यों नहीं लेते.” पीठ ने कहा, “हम यहां नागरिकों के अधिकारों को देखने के लिए हैं।” हालांकि दिल्ली सरकार के अतिरिक्त स्थाई वकील संजय घोष ने अदालत को बताया कि आज तक उन्होंने मृतकों के किसी भी परिजन को मुआवजे की कोई राशि नहीं दी है। उन्होंने वकील अवध कौशिक और पूर्व-सैनिक पूरण चंद आर्या की जनहित याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए भी वक्त मांगा। अदालत ने मामले की सुनवाई आठ अगस्त के लिए सूचीबद्ध की और दिल्ली सरकार को दस दिन के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। जंतर मंतर पर ‘वन रैंक वन पेंशन’ के मुद्दे पर प्रदर्शन के दौरान पिछले साल एक नवंबर को कथित रूप से खुदकुशी करने वाले राम किशन ग्रेवाल को शहीद का दर्जा दिये जाने के आप सरकार के फैसले के खिलाफ जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने मौखिक टिप्पणी की। एक अन्य पीआईएल में राजस्थान के राजनीतिक कार्यकर्ता और किसान गजेंद्र सिंह कल्याणवत को ‘शहीद’ घोषित करने के आम आदमी पार्टी सरकार के फैसले का विरोध किया गया जिसने कथित तौर पर 22 अप्रैल, 2015 को जंतर मंतर पर आम आदमी पार्टी की एक रैली के दौरान खुद को पेड़ पर फंदा लगाकर लटका लिया था। इन मामलों में याचिकाकर्ताओं ने यह आधार पेश किया है कि इन लोगों ने खुदकुशी की है और आत्महत्या का प्रयास भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध है।
खुदकुशी करने वालों को मुआवजा देना है गलत परंपरा: दिल्ली हाई कोर्ट
News Publisher